कविता - नारी तेरी यही कहानी
मौत से लड़कर देती है जीवन
अपना लहू पिलाती है
तिनका तिनका समेट कर
एक नया इतिहास रचाती है
तब आती खुशियों की बारी है
कोई और नहीं यह नारी है।।
बनकर बेटी और बड़ी बहन
घर में जो रौनक लाती है
पापा की प्यारी माँ की दुलारी
कोई और नहीं यह नारी है ।।
छोड़ सहेली आंगन अपना
दूजे घर यह जाती है
भर देती घर को खुशियों से
और पड़ती दुःख पर भारी है
कोई और नहीं यह नारी है ।।
भर कर पेट अपनों का
अक्सर भूखी सो जाती है
बिना बताये दुःख अपना
चुपचाप सदा मुस्काई है
कोई और नहीं यह नारी है ।।
पापा का घर पराया है
ससुराल ने नहीं अपनाया है
न कोई वजूद अपना है फिर भी
पड़ी यह सब पर भारी है
कोई और नहीं यह नारी है ।।
कर लो सम्मान इस नारी का
बिन इसके अधूरी कहानी है
जहाँ कदर है इनकी होती
वहां हर रोज होली दिवाली है
कोई और नहीं यह नारी है।।
चाहे इंद्रा या झाँसी की रानी
हर रूप में पड़ी यह भारी है
कोई और नहीं यह नारी है
सम्मान करो इस नारी का
कोई और नहीं यह नारी है
कोई और नहीं यह नारी है।।
लेखिका -- रजनी सिंह