लघु कहानी - बचपन और पागलपन


                               लघु कहानी - बचपन और पागलपन 

आज ऑफिस में काम बहुत था और काम करने में मैं इतना खो गया था की मुझे लंच करने का समय भी नहीं मिला अब ऑफिस की छुट्टी हो रही थी और मुझे बहुत भूख भी लग रही थी मैं ऑफिस से निकला और घर की तरफ चल पड़ा । तभी रास्ते में मैंने देखा ठेले पर एक आदमी जलेबी और दूध बेच रहा है हल्की  ठण्ड भी थी मैंने सोचा जलेबी और दूध पी लू और अपनी भूख को शांत कर लू यह सोच कर मैं उस ठेले वाले के पास गया और जलेबी और दूध देने को कहा।  ठेले वाले के पास भीड़ थी तो उसने कहा 5 मिनट में देता हूँ  और में रुक कर इंतजार कर रहा था |



तभी मैंने एक व्यक्ति को आते हुए देखा जिसके कपडे फटे हुए और बहुत ज्यादा गंदे थे  उसकी हालत बहुत खराब थी फिर मुझे पता चला की वह पागल है मैं उसे देख रहा था | वह अपनी ही मस्ती में चल रहा था फिर वो एक जगह खड़ा होकर कुछ देखने लगा | तभी मैंने ठेले वाले से कहा जल्दी से मुझे भी जलेबी दे दो बहुत देर हो रही है उसने फिर मुझसे कहा बस आपको ही दे रहा हूँ मैंने कहा ठीक है | तभी मैंने देखा एक औरत अपने बच्चो को पकोड़े खिला रही थी उसका बच्चा खेल में व्यस्त था और वो औरत अपने बच्चे को पकड़ पकड़ कर  खिला रही थी और तभी उसने कहा बच्चे खेल में इतने व्यस्त हो जाते है की भूख तक भूल जाते है | 

तभी मेरी नजर उस पागल आदमी पर पड़ी जो पकोड़े की तरफ देख रहा था की कोई उसे कुछ खाने को दे दे  फिर वो दूसरों की थाली की तरफ देख रहा था की कुछ बचा हुआ ही मिल जाये  पर उसे खाने को कुछ न मिला अब मुझे मेरी भूख उसकी भूख से कम लग रही थी  वह व्यक्ति थक कर अब आगे बढ़ने लगा क्यूकि उसे किसी ने कुछ भी न दिया था और वह वैसे ही चलने लगा जैसे उसे भूख ही नहीं लगी हो |

अब वह उस ठेले के पास आ गया जहाँ में खड़ा था अब वह फिर से वैसे ही सबको देखने लगा जैसे पहले देख रहा था फिर ठेले वाले ने उसे डांटा की वो यहाँ से चला जाये और वह जाने लगा बिना किसी बहस के बिना कुछ बोले तभी मैंने ठेले वाले को कहा डाँटो मत मेरी जलेबी और दूध इसको दे दो ठेलेवाले ने कहा में नहीं दूंगा आप ही दे दो मैंने कहा ठीक है फिर मैंने जलेबी और दूध उस पागल व्यक्ति को दे दी पहले उसने दूध और जलेबी को सूंघा फिर खाने लगा मैं उसे एक टक खड़ा हो कर  देखता रहा और मन में बहुत सारे ख़याल भी आ रहे थे वो दूध और जलेबी पेट भर कर खाने के बाद बहुत ख़ुशी से वहां  से चला गया उसकी चाल अब अलग थी मानो उसमे अब ताकत आ गयी हो मैं उसे देख रहा था अब वो मेरी आँखों से ओझल हो चुका था |

तभी मुझे उस महिला की बात याद आयी की जब तक बच्चो को न खिलाओ वो खाते नहीं है  एक पागल व्यक्ति भी ऐसा ही होता है भूक लगने पर खाना तो खाना चाहता है पर  मानसिक संतुलन ठीक न होने की वजह से भूख को भूल जाता है मैंने सोचा की भिखारी को हम भीख देते है दान करते है इससे अच्छा है की एक ऐसे व्यक्ति को चुने जो की सच में आपके दान का पात्र हो जिसकी भूख आप मिटा सको |आज मेरे मन में शांति थी की आज वह भूखा नहीं सोयेगा। और मैं सुकून से घर आ गया।   


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